वह चली हवा के झोके सी
वह चली हवा के झोके सी
मदमस्त मदन की भाँति भली ।
पंगत-पगत पद पार करे
बन गयी फूल जो रही कली ।
महकी अमरायी सनी धरा
अपलक देखा हूँ तरा-तरा ।
झुरमुट फूलो की डाली है
विचरण करती है वसुंधरा ।।
करिवर सी चाल मनोहर थी
हिरनी सी चंचल दृगघर थी ।
थे स्वेत वसन गंगा जैसे
लगती वह रति से भी वर थी ।।
विन कहे बहुत कुछ बोल गयी
विन बिके हमें वह तोल गयी ।
सपने सी छण भर रुकी नही
पर कितने सपने घोल गयी ।।
डा दीनानाथ मिश्र
Varsha_Upadhyay
27-Sep-2023 07:55 PM
Nice 👍🏼
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
22-Sep-2023 09:19 AM
Wahhhh wahhhh,,, उम्दा भाव और अभिव्यक्ति
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Gunjan Kamal
21-Sep-2023 05:59 PM
👏👌
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